नरक के दुख
नरक के दुख:- यह रत्नप्रभा ( प्रथम ) पृथ्वी तीन हिस्सों में बँटी हुई है। पहला खरकांड (सर-कठिन, कांड-विभाग) कठिन भूमि भाग विशेष, दूसरा पंकबहुलकांड और तीसरा अपबहुलकांड। पंक - कीचड़ विशेष, अप - जल विशेष युक्त जो है वह। इस में पहला खरकांड सोलह विभागों में बँटा हुआ है । १ रत्नकांड, २ वज्र, ३ वैडूर्य, ४ लोहित, ५ मसारगल्ल, ६ हंसगर्भ, ७ पुलक, ८ सौगन्धिक, ९ ज्योतिरस, १० अंजन, ११ अंजनपुलक, १२ रजत, १३ जातरूप, १४ अंक, १५ स्फटिक और १६ रिष्टरत्न। इस प्रकार हरेक नाम अपनी अपनी जाति के रत्न विशेष भू भाग से गर्मित होने से सान्वर्धक है। प्रत्येक काण्ड एक हजार (१०००) योजन मोटा तथा १६००० योजन ऊंचा होता है। यह माप प्रारंभ के खरकाण्ड का है, दूसरा पंक- महुलको ८४००० योज़न मोटा और तीसरा अपजल बहुलकांड ८०००० योजन मोटा होता है । इस प्रकार तीनों संख्याओं को कुल मिलाने से प्रथम धर्मा (रत्नप्रभा) पृथ्वी का म...