गिरीराज
यह बात श्री अभिनन्दन स्वामी प्रभु के समय की है । शुक नामक राजा का राज्य चंद्रशेखर कुटिलता से ले लेते है । शुक राजा मृगध्वज मुनि को मिलते है । मृगध्वज मुनि शुक राजा के पिता एवं केवलज्ञानी थे । मृगध्वज मुनि ने राजा को कहा कि है राजन! धर्म एक एसी चिज है जो जगत की कोई भी असंभव बात को संभव कर सकता है । यहाॅं से थोडे दूर विमलाचल नामक तीर्थ है । वहाॅं के तीर्थ नायक आदिनाथ भगवान के दर्शन करके उस पर्वत में गुफा है, वहाॅं परमेष्ठि महामंत्र का 6 माह तक जाप करने से कोई चिज एसी नहीं है जो साध्य न बन सके । जिस दिन जाप करने से गुफा में चारो ओर प्रकाश फैल जाए उस दिन समझना की सिद्धि हो गई है । कोई भी अजेय शत्रु को जितने का यही एक उपाय है ।
शुक राजा विमलाचल तीर्थ जाते है । पूर्ण भक्ति से विमलाचल पर्वत चढते है और दर्शन किये । दूसरे दिन पर्वत कि गुफा में जाकर आयंबिल तप के साथ 6 माह तक साधना की । 6 माह की साधना पूर्ण होने पर चारो ओर प्रकाश फैल गया । चंद्रशेखर की गोत्र देवी ने चंद्रशेखर के पास जाकर कहा की तुम्हें दिया गया शुक राजा का रुप नष्ट होेनेवाला है । तुझे जहां जाना हो वहां चला जा ।
शुक राजा आदिनाथ भगवान के दर्शन कर हवाई जहाज में बैठकर अपने नगर की ओर वापस जाते है । शुक राजा का रुप नष्ट हो गया । चंद्रशेखर मुल रुप में वापस आ गया । इसलिए मंत्रीओने शुक राजा की वाह-वाह की । तब सब लोगों को पता चला की अभी तक राज करनार शुक राजा झूठा था ।
शुक राज अपने नगर में वापस आकर थोडे वक्त में, खुदने जिस प्रभाव से जित पायी थी उस तीर्थ की यात्रा करने के लिए अपना मंत्री, सामंत और विद्याधर को लेकर हवाई जहाज के साथ विमलाचल तीर्थ आये. चंद्रशेखर भी साथ में ही था ।
दूर से दिख रहे विमलाचल के शिखरों को प्रणाम कर सब लोगों के साथ विमलाचल पर चढने लगे। राजन ने अपने सब आदमीओं को कहा की इस तीर्थाधिराज पर परमेष्ठि महामंत्र का जाप करने से मैंने अपने अजेय शत्रु पर विजय प्राप्त कि है । इसलिए सभी लोगों को इस तीर्थ को शंत्रुजय महातीर्थ के नाम से बुलाना चाहिए । इस वक्त सब एकसाथ बोले जय शत्रुंजय । उस वक्त से विमलाचल तीर्थ शत्रुंजय तीर्थ नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
शुक राजा ने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर 2000 राजा के साथ निरतिचार चारित्र लेकर शत्रुंजय की पावन भूमि से मोक्ष गये.
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