जैन प्रश्नोत्तरी

 प्र.देव कितने हैं ? बताईये।

उत्तर — ‘‘देवाश्चतुर्णिकाया:’’। देव चार निकाय वाले हैं

प्र.देव कौन कहलाते हैं ?
उत्तर — देवगति नामकर्म के उदय होने पर जो नाना प्रकार की बाह्य विभूति सहित द्वीप समुद्रादि स्थानों में इच्छानुसार क्रीड़ा करते हैं वे देव होते हैं।

प्र.निकाय शब्द से क्या आश है ?
उत्तर — देवगति नामकर्म के उदय की सामथ्र्य से जो संग्रह किये जाते हैं, वे ‘निकाय’ कहलाते हैं।

प्र.देवों के चार निकाय कौन से हैं ?
उत्तर — देवों के चार भेद (निकाय) है—भवनवासी, ज्योतिषी, व्यंतर और वैमानिकी।

प्र.चारों प्रकार के देवों के कौन सी लेश्यायें होती हैं ?
उत्तर — ‘‘आदित स्त्रिषु पीतान्तलेश्या:’’ आदि के ३ निकायों अर्थात् भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषी में पीत पर्यंत चार लेश्या (कृष्ण, नील, कापोत, पीत) होती हैं।

प्र.चार निकायों के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘‘दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पा: काल्पोपन्न पर्यंता:’’ काल्पोत्र देव तक के चार निकाय के देव क्रमश: दस, आठ, पांच और बारह भेद वाले हैं।

प्र.. ‘कल्पोपत्र’ अर्थात् कौन से देव ?
उत्तर — वैमानिक देव ही कल्पोपन्न देव कहलाते हैं।

प्र.प्रत्येक निकाय के देवों में विशेष भेद कितने होते हैं ?
उत्तर — इंद्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीक प्रकीर्णका भियोग्य किल्विषकाश्चैकश: प्रत्येक निकाय के देवों में इंद्र, सामानिक, त्रायिंस्त्रशं, परिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, अभियोग्य और किल्विषिक ये दस भेद होते हैं।

प्र.इंद्र कौन होते हैं ?
उत्तर — जो अन्य देवों में नहीं होने वाले असाधारण अणिमादि गुणों के संबंध से शोभते हैं, वे इंत्र कहलाते हैं।

प्र.१०सामायिक देव कौन हैं ?
उत्तर — आज्ञा और ऐश्वर्य के सिवा जो आयु भोग, वीर्य, परिवार और उपभोग में समान है सामानिक देव कहलाते हैं।

प्र.११त्रायस्त्रिंश देव कौन होते हैं ?
उत्तर — जो पिता, गुरु और उपाध्याय के समान सबसे बड़े हैं, जो मंत्री और पुरोहित हैं, वे त्रायस्तिंश कहलाते हैं।

प्र.१२परिषद देवों का स्वरूप क्या है ?
उत्तर — जो सभा में मित्र और प्रेमीजनों के समान होते हैं परिषद कहलाते हैं।

प्र.१३आत्मरक्षा देव कौन से होते हैं ?
उत्तर — जो अंगरक्षक के समान हैं वे आत्मरक्ष देव कहलाते हैं।

प्र.१४.कौन सी जाति के देव ऐरावत हाथी बनते हैं ?
उत्तर — आभियोग्य जाति के देव ऐरावत हाथी बनते है।

प्र.१५क्या चारों ही निकाय के देव दस प्रकार के होते हैं ?
उत्तर —‘‘त्रायस्त्रिंशलोकपालवज्र्या व्यंतर ज्योतिष्का:।’’ व्यंतर और ज्योतिष देव के त्रायस्त्रिंश और लोकपाल भेद नहीं होते हैं ।

प्र.१६चारों निकाय के देवों में कितने इंद्र होते हैं ?
उत्तर — ‘‘पूर्वयोद्वीन्द्रा:’’ प्रथम दो निकायों में दो—दो इन्द्र होते हैं अर्थात् भवनवासीऔर व्यंतरवासी देवों में दो—दो इंद्र हैं ।

प्र.१७भवनवासी एंवम् व्यंतरवासी देवों के कुल इंद्रों की संख्या बताइये 
उत्तर — भवनवासियों के २० तथा व्यंतरवासियों के १६ इंद्र है।

प्र.१८देवों के कौन सा सुख है ?
उत्तर — ‘‘कायप्रवीचारा आ ऐशानात्’’ ऐशान स्वर्ग तक के देव काय से प्रवीचार करते हैं ।

प्र.१९काय प्रवीचार से क्या आशय है ?
उत्तर — मैथुन के उपसेवन को कायप्रवीचार कहते हैं ।

प्र.२०सानत्कुमार स्वर्ग से अच्युत स्वर्ग पर्यंत देवों का सुख कैसा है ?
उत्तर — ‘‘शेषा: स्पर्शरूप शब्दमन: प्रवीचारा:’’। शेष स्वर्ग के देवों—देवियों के स्पर्श से, रूप देखने से, शब्द सुनने से, और मन में स्मरण करने मात्र से काम सुख का अनुभव होता है।

प्र.२१अच्युत स्वर्ग के आगे देवों का सुख कौन सा है ?
उत्तर — ‘‘परेऽप्रवीचारा:’’। अच्युत स्वर्ग से आगे के देव प्रवीचार रहित होते हैं ।

प्र.२२भवनवासी देवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘‘भवनवासिनोऽसुरनाग विद्युत्सुपर्णाग्निवातस्त नितोदधि द्वीप दिक्कुमारा:’’ भवनवासी देव दस प्रकार के होते हैं—

  1. असुरकुमार
  2. नागकुमार
  3. विद्युत्कुमार
  4. सुपर्णकुमार
  5. अग्निकुमार
  6. वातकुमार
  7. स्तनितकुमार
  8. उदधिकुमार
  9. द्वीपकुमार
  10. दिक्कुमार।

प्र.२३भवनवासी देवों को भवनवासी क्यों कहा जाता है ?
उत्तर — क्योंकि ये देव भवनों में रहते हैं, इसलिये भवनवासी कहलाते हैं।

प्र.२४व्यंतर देवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘‘व्यंतरा: किन्नरविं पुरुष महारोगगंधर्व यक्ष राक्षस भूत पिशाचा:।’’ व्यंतर देवों के ८ भेद हैं

  1. किन्नर
  2. विंपुरुष
  3. महोरग
  4. गंधर्व
  5. यक्ष
  6. राक्षस
  7. भूत
  8. पिशाच ।

प्र.२५ज्योतिषी देवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘‘ज्योतिष्का: सूय्र्या चंद्रमसौग्रहनक्षत्र प्रकीर्णक तारकाश्च।’’ ज्योतिषी देव ५ प्रकार के होते हैं— (१) सूर्य (२) चंद्र (३) ग्रह (४) नक्षत्र (५) प्रकीर्णक तारे ।

प्र.२६.ज्योतिषी देवों की गमन स्थली कौन सी है ?
उत्तर — ‘‘मेरुप्रदक्षिण नित्यगतयो नृलोके’’ मेरु की प्रदक्षिणा देते हुए ज्योतिषी देव सदैव मनुष्य लोक में गमन करते रहते है।

प्र.२७.नृलोक से आप क्या आशय है ? इसका विस्तार कितना है ?
उत्तर — नृलोक से आशय मनुष्यलोक से है और इसका विस्तार ४५ लाख योजन है।

प्र.२८ढाई द्वीप में सूर्यचंद्रमा और ग्रहों की संख्या कितनी है ?
उत्तर — ढाई द्वीप में १३२ सूर्य , १३२ चंद्रमा ११६१६ ग्रह और ३६९६ नक्षत्र है।

प्र.२९ज्योतिषी देवों के गमन से किसका ज्ञान होता है ?
उत्तर — ज्योतिषी देवों के गमन से व्यवहार काल का ज्ञान होता है। जैसा कि सूत्र में कहा गया है— ‘‘तत्कृत: कालविभाग’’ जिसका आशय है उन गमन करने वाले ज्योतिषियों के द्वारा किया हुआ कालविभाग है।

प्र.३०कालविभाग अर्थात् कौन सा काल ?
उत्तर — समय, आवलि आदि व्यवहार काल का विभाग ही यहां काल विभाग है।

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