तीर्थंकर

 

14 राजलोक में उत्कृष्ठ और जघन्य कितने तीर्थंकर होते है


तीर्थंकर कर्मभूमि में ही होते है। उनके अलग - अलग विभाग को विजय    

  कहेते  है। ऐसे 1 विजय में  काल में 1 ही तीर्थंकर होते है।


- जंबुद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में 32 "विजय" है। भरत क्षेत्र में 1 "विजय" है,

  और ऐरावत क्षेत्र में "विजय" है इसलिये सब मिलकर 34 "विजय"  है, 

  घातकीखंड जंबुद्वीप से 2 गुना हैइसलिये घातकीखंड में 68 "विजय "

  है, अर्धपुष्करावर्त खंड भी घातकी खंड जितना है , इसलिये वहाँ भी 68 

  "विजय" है। पुष्करावर्त का बाकी का भाग मनुष्य क्षेत्र से बहार हैइसलिये 

  वहाँ "विजय" की गिनती नहि होती।


जंबुद्वीप में 34 विजय

  घातकीखंड में 68 विजय

  अर्धपुष्करावर्त में 68 विजय


सभी मिलाकर 170 विजय होते है।


जिस काल में दरेक क्षेत्र में तीर्थंकर होते है , वो काल में तीर्थंकर की उत्कृष्ट

  संख्या 170 की होती है।


अजितनाथ भगवान के समय में ऐसे दरेक विजय में एक - एक तीर्थंकर  

  विचर रहे थे। अजितनाथ भगवान के समय उत्कृष्ट 170 तीर्थंकर विचर रहे

  थे।


वर्तमान काल में 20 तीर्थंकर विचर रहे है। ये संख्या जघन्य काल की है।


- अभी जंबुद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में 8 , 9 , 24 और 25 विजय , ये 4 विजय

   में एक - एक तीर्थंकर विचर रहे है। इसलिये जंबुद्वीप में 4 तीर्थंकर विचर

   रहे है। घातकीखंड में उसकी संख्या गुनी है। इसलिये वहाँ 8 तीर्थंकर

   विचर रहे है। अर्धपुष्करावर्त में भी 8 तीर्थंकर विचर रहे है।


जंबुद्वीप में 4 तीर्थंकर

  घातकीखंड में 8 तीर्थंकर

  अर्धपुष्करावर्त में भी 8 तीर्थंकर


- ऐसे जघन्य काल में 20 तीर्थंकर विचरते रहेते है।


- हम कई बार कहेते है की हमे सीमंधर स्वामी के पास जाना है। ऐसा हम

  क्युं कहेते है सीमंधर स्वामी भगवान हम से सबसे नजिक में है। वो

  तीर्थंकर हमसे सबसे ज्यादा पास में है।जंबुद्वीप के महाविदेह क्षेत्र के 8, 9,

  24, 25 विजय में तीर्थंकर है। ये जो 8 नाम जिसका नाम पूष्प कलावती

  विजय हैवो विजय में ही सीमंधर स्वामी भगवान विचर रहे है। इसलिये

  सबसे ज्यादा नजदिक सीमंधर स्वामी ही है।



 


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