५८ घडी कर्म की तो २ घडी धर्म की

 अट्ठावन घडी कर्म की 

 तो दो घडी धर्म  की 


एक शेठ, जिसका नाम गांव के करोड़पति श्रेष्ठीओ में गिना जाता था ।उनका व्यापर परदेश मे  भी चलता था । एक बार  परदेश से अचानक समाचार आये की आप यहाँ आकर अच्छी तरह से अपना व्यापार संभाल लीजिये । समाचार सुनते ही सेठ विदेश के लिए रवाना हो गये। वहां व्यापार की देखभाल करके और आगे की व्यापारिक लेन-देन की रूपरेखा समझाकर कुछ ही महीनो में सेठजी वापस घर आने के लिए रवाना हुए,उनके साथ धनराशि का जोखम अधिक होने से उन्होंने अपने साथ तीन-चार पहरेदार रख लिए ।

भयंकर जंगल एवं अनेक अटवियों को सुरक्षित रूप से पार करते हुए शेठ जब अपने गांव के नजदीक पहुँचे , तब अचानक से नजदीक  की किसी पहाड़ी से ६० डाकुओ का गिरोह आ निकला ।एकसाथ चारो तरफ से उन्होंने शेठ जी को घेर लिया तथा जोर-जोर से बोलने लगे,” लूटो, पकड़ो, मारो , सारी धन-सम्पति को लूट लो ।”

        

अचानक ऐसा हमला देखकर शेठ हक्का -बक्का रह गया ।वह थर-थर कांपने लगा । ६० डाकुओ को देखकर , शेठ के साथ रहे हुए पहरेदार भाग खड़े हुए । अब शेठ अकेला होने के कारन ज्यादा भयभीत था ।सेठ ने, लूटने को तत्पर हुए उन चोरो को गौर से देखा तो उनमे से दो चोरो को शेठ ने पहचान लिया और उनको नाम के साथ जोर से पुकारकर सेठ जी ने कहा , “अरे मानिकचन्द तुम ? अरे करमचंद तुम ?

जब उन दो चोरो ने सेठ को अपने नाम से पुकारते हुए देखा तो दोनों सोच में पड गए की इनको हमारा असली नाम का पता कैसे लगा ? दोनों ने जब सेठ को ध्यान पूर्वक देखा तो वे भी पहचान गए और दोनों एक साथ बोल उठे ,”अरे ! ये तो हमारे अपने ही सेठ है । हमने पहले इनके घर में नौकरी की थी , हमने इनका नमक खाया हुआ है अतः इन पर हाथ उठाना , उनको लूटना अपने लिए नमक हराम बनना है ।जिस डाली पर बैठना , उसी को काटना यह उचित नहीं है ।हमें शेष अपने अट्ठावन साथियों को भी इसके लिए मना करना चाहिए ।”

     

उन दोनों ने अपने अट्ठावन साथियो से कहा — “यह हमारे पुराने सेठ है , इनको मत लूटो, इनको मत मारो ।”

यह सुनकर उन अट्ठावन चोरो ने कहा ,” तुमने इनका नमक खाया है , हमने तो नहीं खाया , तो तुम मत लूटो किन्तु हमको मना करने वाले तुम कौन होते हो ? इतनी धन -सम्पति  हम क्यों जाने दे ? “ इस तरह चोरो के बीच आपस में भेद पड़ गया और वे सब बहस में उलझ गए तथा आपस में ही लड़ने लगे ।


इस मौके का फायदा उठाकर उन दोनों चोर ने सेठ जी से कहा , “आप जल्दी से यहाँ से चले जाइये , हमारे होते हुए आपका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता , हम इनको संभाल लेंगे , आप जल्दी से चले जाइये ।सेठ जी सकुशल घर पहुँच गए और सेठानी को सारा वृतांत सुनाया । सेठानी आनंद-विभोर होकर बोली -


“स्वामी ! सिर्फ दो व्यक्तियों की पहचान के सामने उन अट्ठावन का कोई जोर नहीं चल सका , सबकी हार हो गयी।

इस घटना के पश्च्यात सेठ ने गहरा चिंतन किया , उन्होंने सोचा ,” दिवस और रात्रि की भी ६० घडी होती है । भले ही मनुष्य अट्ठावन घडी संसार के कामो में व्यस्त रहे लेकिन दो घडी भी यदि मनुष्य सच्चे मन से धर्म ध्यान करे, सामयिक करे , सत्संग करे, प्रभु का नाम स्मरण करे , भक्ति करे ,तो निश्चित रूप से अट्ठावन घडी बंधे हुए पाप कर्मो , दो घडी किये हुए धर्म ध्यान के प्रभाव से निष्फल हो जायेंगे ।

जिस प्रकार दो व्यक्ति उन ५८ चोरो पर भरी पद गए ठीक उसी प्रकार , दो घडी का किया हुआ धर्म भी ५८ घडी के कर्म पर भारी पड़ सकता है , इसलिए प्रत्येक मनुष्यों को चाहिए की वे कम से कम दो घडी धर्म ध्यान में अवश्य पसार करे।


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